Karwachauth ka Itihaas aur Mahatva – करवा चौथ के त्यौहार की कहानी और उसका धार्मिक महत्व

करवा चौथ: सुहाग का पावन पर्व

Karwachauth ka Itihaas aur Mahatva

Karwachauth ka Itihaas– करवा चौथ के त्यौहार की कहानी और उसका धार्मिक महत्व उत्तर भारत का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण और लोकप्रिय पर्व है, जिसे विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र, सुख और अखंड सौभाग्य के लिए पूरे मन, भक्ति और श्रद्धा से मनाती हैं। इस दिन महिलाएँ सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं और सांझ के समय पूजा कर चाँद देखकर व्रत खोलती हैं।

Karwachauth ka Itihaas: प्राचीन कथाओं और परंपरा से

करवा चौथ का उल्लेख कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं में मिलता है:

1. सबसे प्रसिद्ध कथा वीरवती नामक स्त्री की मानी जाती है, जिसने पति की लंबी आयु के लिए पहला करवा चौथ व्रत रखा। उसके भाई ने चाँद निकलने का धोखा देकर जबरन व्रत तुड़वा दिया और इसका परिणाम यह हुआ कि वीरवती के पति की मृत्यु हो गई। उसने बारह महीने तक चतुर्थी का नियमपूर्वक व्रत कर अपने पति को पुनर्जीवित कराया।

2. एक अन्य कथा के अनुसार, करवा नाम की पतिव्रता स्त्री ने अपने पति को मगरमच्छ के प्रकोप से बचाने के लिए यमराज से उसकी जान की रक्षा मांगी, उसकी सच्ची निष्ठा और श्रद्धा ने यमराज को भी विचार बदलने पर मजबूर कर दिया।

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3. महाभारत काल में भी द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की सलाह पर अर्जुन की रक्षा हेतु करवा चौथ का व्रत किया था, जिससे पांडवों की विजय सुनिश्चित हुई।

4. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह परंपरा देवताओं और दानवों के युद्ध के समय से भी जुड़ी हुई है, जब देवताओं की पत्नियों ने अपने पतियों की रक्षा के लिए व्रत रखा और युद्ध में विजय पाई।

Karwachauth ka Dharmik Mahatva: आध्यात्मिक महत्व

करवा चौथ केवल परंपरा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के रिश्ते, प्रेम, विश्वास और त्याग का प्रतीक है। महिलाएँ पूरे दिन व्रत रखती हैं, सोलह श्रृंगार करती हैं, कथा सुनती हैं और रात्रि को चंद्रमा की पूजा करती हैं।
धार्मिक दृष्टि से यह दिन बहुत पवित्र माना जाता है—कहा जाता है कि इस व्रत के पालन से घर में सुख-शांति आती है, पति की आयु लंबी होती है और दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है।

करवा चौथ के सामाजिक और सांस्कृतिक रंग

करवा चौथ समाज में भी एकता और मेल-जोल का पर्व है। महिलाएं एक साथ मिलकर पूजा करती हैं, गीत गाती हैं और जीवन भर के साथ के लिए प्रार्थना करती हैं। इस त्यौहार में “सरगी” की परंपरा भी है, जिसमें सास अपनी बहू को पूजा की शुभ शुरुआत के लिए मिठाई, फल, सेवइयां आदि देती हैं।