delhi stray dogs supreme court आदेश पर बड़ा विवाद, आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान क्या?

delhi stray dogs supreme court आदेश: विवाद, तथ्य और समाधान

Delhi stray dogs supreme court आदेश पर बड़ा विवाद, आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान क्या?

delhi stray dogs supreme court

delhi stray dogs supreme court मामले में 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली‑एनसीआर के लगभग 10 लाख आवारा कुत्तों को शेल्टर में रखने के आदेश दिए। यह निर्देश तुरंत ही चर्चा और विवाद का विषय बन गया है, क्योंकि पशु अधिकार कार्यकर्ताओं और कानून विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि देश के मौजूदा Animal Birth Control (Dogs) Rules, 2001 और 2023 का उल्लंघन भी करता है।

इन नियमों के तहत, समुदायिक कुत्तों को पकड़कर नसबंदी और टीकाकरण के बाद उसी स्थान पर वापस छोड़ना अनिवार्य है। कुत्तों का रुटीन विस्थापन न केवल गैरकानूनी है, बल्कि इससे मौजूदा आवासीय संतुलन भी बिगड़ता है।


🐕 हमारे मोहल्लों के हिस्सेदार

दिल्ली के ये आवारा कुत्ते सिर्फ जानवर नहीं, बल्कि मोहल्ले के ‘असली रक्षक’ भी हैं — जैसे मेट्रो स्टेशन की रानी, बच्चों को ट्यूशन तक छोड़ने वाला शेरू, या चाय दुकान का पहरेदार काला। कई बॉलीवुड सेलेब्रिटी — अनुष्का शर्मा, विराट कोहली, रवीना टंडन और जॉन अब्राहम — भी ऐसे समुदायिक कुत्तों को अपनाने की मिसाल पेश कर चुके हैं।

चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन का ‘टाइगर’ कुत्ता भी एक मिसाल है, जिसने अपनी समझदारी से मोबाइल चोरी के आरोपी को पकड़वाने में RPF की मदद की। यह दिखाता है कि ये कुत्ते सिर्फ रहवासी ही नहीं, बल्कि सुरक्षाकर्मी भी हैं।


🚫 विस्थापन से समस्याएं क्यों बढ़ेंगी?

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि दिल्ली या बेंगलुरु जैसे बड़े शहर इस आदेश को लागू करते हैं, तो मौजूदा शेल्टर की क्षमता को 1000 गुना तक बढ़ाना पड़ेगा — जो व्यावहारिक रूप से संभव नहीं।
इतिहास गवाह है कि कुत्तों को मारना या विस्थापित करना ‘वैक्यूम इफ़ेक्ट’ पैदा करता है — यानी उनकी जगह तुरंत नए, असंरक्षित और बिना टीकाकरण वाले कुत्ते आ जाते हैं, जिससे झगड़े और रेबीज का खतरा बढ़ जाता है।


✅ समाधान: ABC फॉर्मूला

  • सभी कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण नियमानुसार करें।
  • अवैध पेट शॉप्स और ब्रीडर्स पर कड़ी कार्रवाई करें।
  • लोग खरीदने के बजाय गोद लेने (adoption) को बढ़ावा दें।

कुछ शहरों ने इसका शानदार उदाहरण दिया है:

  • जयपुर – ‘Help in Suffering’ संस्था के प्रयास से रेबीज खतरा लगभग शून्य हो गया।
  • लखनऊ – WHO के 70% स्टरलाइजेशन बेंचमार्क को पार किया।
  • सिक्किम – 2006 से 2015 तक मानव रेबीज का कोई मामला नहीं।

🤝 नागरिकों की भूमिका

जो लोग रोज़ाना इन कुत्तों को खिलाते हैं, वे नसबंदी अभियानों में मदद करते हैं, बीमारियों पर निगरानी रखते हैं, और मोहल्लों में दोस्ताना माहौल बनाते हैं। इसी साल बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी समुदायिक जानवरों को खिलाने के अधिकार को मान्यता दी और फीडिंग ज़ोन तय करने का निर्देश दिया।


📌 निचोड़

यदि लक्ष्य सड़क पर कम कुत्ते और शून्य रेबीज है, तो रास्ता स्पष्ट है — ABC फॉर्मूला को पूरे पैमाने पर लागू करना, और अंधाधुंध विस्थापन से बचना।

यह भी पढ़े..  Vivo V60 आज भारत में लॉन्च, जानें कीमत, फीचर्स और कलर ऑप्शंस